Thursday, December 27, 2018

माँ तुम जननी हो (कविता)

माँ तुम जननी हो (कविता)

माँ तुम तो जननी हो
जन्म देने वाली हो
बहती सरिता का निश्च्छल पानी
जिसको पीकर बुझ जाती है
मेरी प्यास पुरानी ||

तेरा निःस्वार्थ स्नेह-प्रेम है,
बहुत ही ख़ास- बेमिसाल
भोले मुख से मीठी बोली
कर देती है कमाल ||


तेरा प्यार है तपती धूप में
बारिश की पहली बूँद
कर देती है मेरी जिंदगी को
सारी विपदाओं से दूर ||


रहती हो तुम साये की तरह
जैसे धूप और छाया
तेरी गोद में आकर  मैंने
पूरे जग का दुलार पाया ||


ना जानूं कोई मंदिर
ना जानूँ कोई भगवान
तेरे चरणों में ही है
माँ, मेरे चरों धाम ||

   -यशिका पाठक 

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